भारत में त्योहार सिर्फ धार्मिक अनुष्ठान भर नहीं हैं; ये हमारी सांस्कृतिक स्मृति और सामाजिक जुड़ाव के वाहक भी होते हैं। हरतालिका तीज (Hartalika Teej), जिसे भाद्रपद शुक्ल पक्ष तृतीया को मनाया जाता है, सदियों से महिलाओं की आस्था और समर्पण का प्रतीक माना गया है।
पौराणिक मान्यता अनुसार, माता पार्वती ने हिमालय की गुफाओं में कठोर तपस्या कर शिव को पति रूप में प्राप्त किया था। उस तपस्या का दिन ही हरतालिका तीज के रूप में मनाया जाता है।
"हर" का अर्थ — हर लेना, और "तालिका" का अर्थ — सखी (मित्र)। कथा कहती है कि पार्वती की सहेलियाँ उन्हें वन में ले गईं ताकि उनका यह तप भंग न हो। यही घटना तीज के नाम से जुड़ी।
तीज उत्सव का ऐतिहासिक विस्तार
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उत्तर भारत: मुख्य रूप से उत्तर प्रदेश, बिहार, राजस्थान और मध्य प्रदेश में विवाहित महिलाएँ इसे पति की लंबी आयु के लिए रखती हैं।
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नेपाल: यहाँ तीज पर महिलाएँ लाल वस्त्र पहनकर पशुपतिनाथ मंदिर में विशेष पूजा करती हैं।
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राजस्थान के जयपुर व उदयपुर में तीज पर निकलने वाली शोभायात्राएँ आज भी ऐतिहासिक धरोहर मानी जाती हैं।
इतिहासकार डॉ. उषा मिश्रा (दिल्ली यूनिवर्सिटी) बताती हैं:
“तीज उत्सव वैदिक परंपरा और स्त्री-शक्ति की चेतना, दोनों का संगम है। यह मूलतः महिलाओँ के सामूहिक संगठित उत्सव का प्रतीक रहा है।”
सांख्यिकीय आंकड़े और रुझान
हाल के वर्षों में हरतालिका तीज का स्वरूप बदलता हुआ दिखा है।
1. भागीदारी (Participation)
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2015 में भारत में करीब 1.2 करोड़ महिलाएँ (सामान्य आंकड़े – धार्मिक परिषद के अनुसार) यह व्रत करती थीं।
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2024 तक यह संख्या बढ़कर लगभग 1.8 करोड़ तक पहुँची।
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धार्मिक टूरिज्म और मंदिरों के आँकड़ों के अनुसार नेपाल, बिहार और राजस्थान में सबसे अधिक वृद्धि दर्ज की गई।
2. सोशल मीडिया ट्रेंड्स
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Google Trends डेटा अनुसार 2024 में “Hartalika Teej puja vidhi” और “Teej muhurat” keywords पर 50% से अधिक सर्च हाइक मिली।
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Instagram और YouTube पर "Teej songs", makeup tutorials, और puja vlog सबसे ज्यादा देखे गए।
3. अर्थव्यवस्था पर असर
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राजस्थान और उत्तर प्रदेश की हैंडलूम इंडस्ट्री को तीज पर भारी ऑर्डर मिलते हैं।
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2022 में सिर्फ जयपुर में तीज पर बनाए गए लाल-सब्जी रंग के लहंगे व साड़ियाँ मिलाकर 150 करोड़ रुपये से अधिक की बिक्री हुई।
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मिठाई उद्योग (खासकर घेवर, जो राजस्थान की पहचान है) – 2024 में सिर्फ अगस्त माह में करीब ₹500 करोड़ का कारोबार हुआ।
ऐतिहासिक तुलना
वर्ष | प्रमुख पहलू | आंकड़े/ट्रेंड |
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1950s | केवल पारंपरिक पूजा | गाँवों में सीमित उत्सव |
1980s | शहरीकरण का प्रभाव | तीज मेले और शोभायात्राएँ लोकप्रिय |
2000s | मीडिया कवरेज | टीवी और अखबारों ने धार्मिक घटनाओं को राष्ट्रीय स्तर पर पहुँचाया |
2020s | डिजिटल युग | ऑनलाइन पूजा प्रसारण, सोशल मीडिया वर्चुअल सहभागिता |
बदलते सांस्कृतिक स्वरूप
हालाँकि तीज की मूल परंपरा – व्रत, कथा और शिव-पार्वती पूजन – वही है, लेकिन रूप बदल गए हैं।
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पहले केवल घरों या मंदिरों तक सीमित, अब तीज पारिवारिक व सामुदायिक उत्सव बन गई है।
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पहले लोकगीत व चौपाइयाँ गाई जाती थीं, अब DJ और बॉलीवुड गीतों पर सामूहिक नृत्य का चलन बढ़ा है।
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पहले पारंपरिक सुहागिनें लाल-हरे वस्त्र पहनती थीं, अब आधुनिक फैशन के साथ "तीज special collections" मार्केट में आते हैं।
समाजशास्त्री प्रो. रश्मि दीक्षित कहती हैं:
“जहाँ पश्चिमी सभ्यता में Valentine’s Day रिश्तों के उत्सव का रूप लेता है, वही स्थान भारतीय परंपरा में हरतालिका तीज लेती है। फर्क बस इतना है कि यहाँ यह उत्सव धर्म और अध्यात्म से भी गहराई से जुड़ा है।”
निष्कर्ष
हरतालिका तीज सिर्फ एक व्रत नहीं, बल्कि आस्था, स्त्रीशक्ति और समाज की ऐतिहासिक निरंतरता है। सांख्यिकीय दृष्टि से इसका विस्तार दिखाता है कि यह त्योहार न केवल धार्मिक, बल्कि आर्थिक और सांस्कृतिक दृष्टि से भी भारत-नेपाल क्षेत्र की पहचान बन गया है।